tag:blogger.com,1999:blog-7313703186279973863.post2754924083891278902..comments2023-11-03T01:13:53.524-07:00Comments on हिसालू-काफल: निठल्ला चिंतनदीपा पाठकhttp://www.blogger.com/profile/12130328147834660274noreply@blogger.comBlogger16125tag:blogger.com,1999:blog-7313703186279973863.post-76326911137587267372011-04-16T23:58:13.438-07:002011-04-16T23:58:13.438-07:00Shukriya Doston housla-afzai ke liye. Sayad isi se...Shukriya Doston housla-afzai ke liye. Sayad isi se bahut dino se ruki kalam ko kuch aur likhne ki prerna mil sake...<br />Thanks and regardsदीपा पाठकhttps://www.blogger.com/profile/12130328147834660274noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7313703186279973863.post-42051210705518966262011-04-15T11:46:15.414-07:002011-04-15T11:46:15.414-07:00दीपा, आप बहुत ही सहज लिखती हो. ऐसा नहीं लगता कि प...दीपा, आप बहुत ही सहज लिखती हो. ऐसा नहीं लगता कि पढ़ा.. लगता है जैसे देखा... अच्छा-बुरा सब, जो जैसा है या था. <br />और क्यों नहीं लिखतीं ?Pushpendra Vir Sahil पुष्पेन्द्र वीर साहिलhttps://www.blogger.com/profile/06306748373004581109noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7313703186279973863.post-90488415787457381552011-04-15T10:27:21.683-07:002011-04-15T10:27:21.683-07:00ham to bas ye hi kahenge...Cha gaye Boss!!.. keep ...ham to bas ye hi kahenge...Cha gaye Boss!!.. keep writing... DSB grp me bhi to kabhi kabhi ehsaan kar diya kar apni lekhni ka... kaafi arse se intezaar kar rahey hain ham aapka wahan par... :))Nandita Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/07625705787413212740noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7313703186279973863.post-57351179525078470542011-03-20T10:35:35.807-07:002011-03-20T10:35:35.807-07:00ब्लॉग की सभी प्रविष्टियाँ पढ़ना पूरा हुआ आज. सिर्फ...ब्लॉग की सभी प्रविष्टियाँ पढ़ना पूरा हुआ आज. सिर्फ इतना कहूंगा कि न केवल पहाड़ की बेहतर समझ दिखाई देती है वरन और भी कुछ कहा गया है जो गूढ़ न हो कर भी मेसेज दे ही देता है. लिखती रहें.Pushpendra Vir Sahil पुष्पेन्द्र वीर साहिलhttps://www.blogger.com/profile/06306748373004581109noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7313703186279973863.post-36607306166876790072007-12-30T01:34:00.000-08:002007-12-30T01:34:00.000-08:00बहुत अच्छा लिखा। ....और हां , आपको बधाई भी।बहुत अच्छा लिखा। ....और हां , आपको बधाई भी।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7313703186279973863.post-63930354701176822882007-12-05T20:32:00.000-08:002007-12-05T20:32:00.000-08:00i am always at a loss to know that why all so call...i am always at a loss to know that why all so called progressive and educated indians never talk of kashmir even once while lamenting for gujrat and 84. none of u ever laments the deaths of our brave security personnels dying in dozens daily for their fellow countrymen. i do not approve of any communal butchery but request y people to balance ur views.मुनीश ( munish )https://www.blogger.com/profile/07300989830553584918noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7313703186279973863.post-14023428054817220392007-11-16T18:25:00.000-08:002007-11-16T18:25:00.000-08:00दिपुली... तूने तो कमाल कर दिया. इतना बढ़िया लिखा ह...दिपुली... तूने तो कमाल कर दिया. इतना बढ़िया लिखा है. पहली बार सरदार के उस अंतरंग की जानकारी मिली जिसे उसने ख़ुद कभी ज़ाहिर नहीं होने दिया. <BR/><BR/>उसके मुख से एक बार भी मैंने 1984 का ज़िक्र नहीं सुना. लेकिन भीतर इतना बड़ा घाव !!! <BR/><BR/>लिखते रहना. बहुत अच्छा रहेगा. बड़ी होकर वान्या पढ़ेगी तो उसे बहुत कुछ पता चलेगा.Rajesh Joshihttps://www.blogger.com/profile/00229556478300789066noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7313703186279973863.post-67238753804317001032007-11-14T22:20:00.000-08:002007-11-14T22:20:00.000-08:00Deepa, kya kahu aapke liye....sach me behad muskil...Deepa, kya kahu aapke liye....sach me behad muskil hain.....man ki gahri sanvednao ko itne sahaj roop me pesh karna sachmuch vismrit kar deta hai.......maine kafi secure life dekhi hai abhi tak....jaha kuch insecure jaisi baat hoti mere father mera raasta udher se badal dete...hallanki dharm, status or paise ki chahat kitni vibhats ho sakti hai ...iska andaza hain mujhe par aapke sansmarno ne zindagi ko aur karib se mahsoos karne ko prerit kiya hain...Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/16737224362351769523noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7313703186279973863.post-46997795848287836892007-11-08T10:52:00.000-08:002007-11-08T10:52:00.000-08:00आपकी पोस्ट का टाईटिल निठल्ला चिंतन देखा तो बड़ा खु...आपकी पोस्ट का टाईटिल निठल्ला चिंतन देखा तो बड़ा खुश हुआ कि चलो किसी ने तो हमारे चिट्ठे के बारे में लिखा, लेकिन जब पढ़ना शुरू किया तो पता चला कि बड़ा गहरा चिंतन है। दंगो का पढ़कर ही मन और तन दोनों सिहर उठते हैं।<BR/><BR/>वैसे मुक्तेश्वर बहुत सुन्दर जगह है, वहाँ से अल्मोड़ा भी बड़ा अच्छा दिखायी देता है, आपके ब्लोग का नाम देख कर बचपन की याद आ गयी। जब हम हिसालू तोड़ने जाया करते थे, बस के रूकते ही काफल की जिद्द करते थे, नमक तेल में लगे काफल की बात ही कुछ और होती थी।Tarunhttps://www.blogger.com/profile/00455857004125328718noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7313703186279973863.post-80976771098354986222007-10-31T09:52:00.000-07:002007-10-31T09:52:00.000-07:00दीपा आपकी बात व विचारों से मुझे पूरा इतफाक है। मुझ...दीपा आपकी बात व विचारों से मुझे पूरा इतफाक है। मुझे भी ये चीजे इसी तरह परेशां करती है। न्याय मिलना चाहिऐ, कोई दो राय नही है, पर न्यायपलीका के आगे सामाजिक विसंगती को समझना हो तो अंतर्सम्बंधो पर भी ध्यान देना पड़ेगा। किसी भी हालत मे किसी भी इंसान की गरिमा पर सवाल नही उठना चाहिऐ।स्वप्नदर्शीhttps://www.blogger.com/profile/15273098014066821195noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7313703186279973863.post-31937508450443387542007-10-31T00:39:00.000-07:002007-10-31T00:39:00.000-07:00सुषमा, आपका विश्लेषण बिल्कुल ठीक हो सकता है। लेकि...सुषमा, आपका विश्लेषण बिल्कुल ठीक हो सकता है। लेकिन मुद्दा यहां अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक होने का नहीं है। कोइ भी धर्म या जाति के लोग अलग-अलग जगह पर अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक हो सकते हैं। सवाल है कि किसी भी इंसान की अमानवीय तरीके से जान लेने और उसे किसी भी आधार पर सही साबित करने को कैसे तर्कसंगत करार दे सकते हैं। मेरी व्यक्तिगत सोच है कि हमने यह नहीं चुना कि हमने किस धर्म के, कुल के, जाति के परिवार में किस लिंग के इंसान के तौर पर जन्म लिया, तो यह हमारे गरिमामय तरीके से जीने के हक को निर्धारित करने वाला कारक कैसे बन सकते हैं ? सही या गलत का फैसला किसी व्यक्ति के धर्म के आधार पर किया जाना कितना न्यायसंगत है? बात न्याय की है, जब तक न्याय नहीं होगा तब तक अविश्वास कैसे दूर होगा? गुजरात दंगों में हिंदु-मुस्लिम मिला कर लगभग १५०० लोगों और १९८४ के दंगों में २००० के करीब सिक्खों की हत्या की गई। ये सरकारी आंकङे हैं जो हमेशा ही वास्तविक संख्या से कम होते हैं। उस से भी ज्यादा शर्मनाक तथ्य यह है कि २३ साल बीत जाने के बाद भी ८४ के दंगों के एक भी आरोपी पर आरोप सिद्ध नहीं किया जा सका है, जबकि गुजरात दंगों के केवल आठ आरोपियों को सजा दी गई। यहां आंकङे देने का मेरा आशय सिर्फ इतना है कि हमने एक देश और समाज के तौर पर इंसानी जानों को कितना सस्ता बना दिया है।दीपा पाठकhttps://www.blogger.com/profile/12130328147834660274noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7313703186279973863.post-16041042393998238732007-10-30T11:49:00.000-07:002007-10-30T11:49:00.000-07:00अच्छी पोस्ट है। कुछ इत्फाकन ऐसा रहा की नैनीताल के...अच्छी पोस्ट है। कुछ इत्फाकन ऐसा रहा की नैनीताल के तीन साल और बरोदा के दो सालो मे मेरी roomates सिख्ख थी। कुछ जाना मेने भी उनसे । ये हैरत और घृणा मुझे दंगे की मानसिकता के लिए एक साथ होती है। उसका दूसरा पहलू है miniority की golbandi और अलगाव और फिर उससे उपजी कट्टर साम्प्रदायिकता। ऐसा लगता है की जैसे ये एक लूप बन गया है। उत्तराखंड आन्दोलन के दिनों मे अपने पहाडी होने पर कुछ इसी तरह की फब्तियाँ मुझे भी सुनने को मिलती थी लखनऊ मे। अभी यही पास पेंसल्वेनिया के एक गुरूद्वारे मे एंटी-इंडिया नारे भी सुने। थोडी बहुत देशभाक्ती जिन हिन्दुस्तानीयों मे थी वो बिना प्रसाद लिए लौट आये हलाकि अपने सिख दोस्तों की वजह से वे वहां गए थे। अगर आप लोगो को मिले तो आनंद पटवर्धन की "Father, son and Holy war" देखे। कोई भी पीछे नही है न अल्पसंख्यक न ही बहू संख्यक.स्वप्नदर्शीhttps://www.blogger.com/profile/15273098014066821195noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7313703186279973863.post-69015724731854282212007-10-30T06:40:00.000-07:002007-10-30T06:40:00.000-07:00फिर ऐसा क्या होता है कि एक गरीब आम आदमी आतंकवादी क...<B>फिर ऐसा क्या होता है कि एक गरीब आम आदमी आतंकवादी की सी हरकतें करने में कोई हिचकिचाहट महसूस नहीं कर पाता? फिर से वीरेनदा के ही शब्दों में ही " हमने यह कैसा समाज रच डाला है" ?</B><BR/><BR/>मैं भी कई बार यह सोच कर हैरान होता हूँ, यही प्रश्न कचोटता रहता है कि किस तरह इन्सान नेताओं के बहकावे में आकर किस हद तक गिर जाता है। खासकर वे लोग जिनको खाने पीने का भी ठिकाना नहीं होता। एक दिन काम मिला तो मिला बाकी के दिन बेरोजगार रहते हैं वे लोग....!!!!<BR/><BR/><A HREF="http://www.nahar.wordpress.com" REL="nofollow">॥दस्तक॥</A><BR/><A HREF="http://mahaphil.blogspot.com/" REL="nofollow">गीतों की महफिल</A>Sagar Chand Naharhttps://www.blogger.com/profile/13049124481931256980noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7313703186279973863.post-61111578048506462232007-10-29T22:30:00.000-07:002007-10-29T22:30:00.000-07:0084 के दंगे मेरी स्मृति में भी हैं, मैं पिथोरागढ़ ह...84 के दंगे मेरी स्मृति में भी हैं, मैं पिथोरागढ़ हॉस्टल में थी तब, जब बाज़ारों से एक-एक कर सरदारों की दुकानें गायब हो गयीं . दीवारों पर भड़काऊ नारे दिखने लगे और उसके बाद के दिनों में ऐसा लगने लगा मानो सरदार हों ही नहीं, उनके लम्बे बाल कटने लगे . ऐसा ही एहसास यूनिवर्सिटी के दिनों में लखनऊ में हुआ बाबरी मस्जिद वाले दिनो में, मेरी दोस्त जो फैजाबाद की थी और जिसने अपनी आँखों के आगे एक लड़की का रेप होते देखा, वह लड़की टीबी से ग्रस्त थी और यह रेप किसी और ने नही, खुद पुलिस वालों ने किया था. शायद तब दिल में वाकई दर्द होता था, यह दर्द मुझे इस रूप में भी याद है कि मैंने अपनी एक अभिन्न मित्र को खो दिया था, क्योंकि उसे किसी भी अलग धर्म के व्यक्ति पर भरोसा नही रह गया था । <BR/>आशीष का सवाल वाजिब है, हम सभी तो थोडा दूर से घटनाओं को देख पाते हैं, कुछ देर संवेदनाएं जगती हैं और फिर अपनी ज़िंदगी के उजाले-अंधेरों में सब भूल जाते हैं. सवालों से जूझ नहीं पाते तो उनसे दरकिनार कर जाते हैं.यह पोस्ट तुम्हारी अच्छी है, कुछ और संस्मरण भी लिखो .इन्दुhttps://www.blogger.com/profile/15370498837448588351noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7313703186279973863.post-85878156319553202872007-10-29T01:04:00.000-07:002007-10-29T01:04:00.000-07:00दिव्यता का इस्तेमाल अक्सर जंगलीपन के लिबास की तरह ...दिव्यता का इस्तेमाल अक्सर जंगलीपन के लिबास की तरह ही किया जाता है- यह बात तुम्हारी इस पोस्ट में इतनी अच्छी तरह उभरी है कि इस संदर्भ में इसके वजन की कोई चीज अभी मैं याद भी नहीं कर पा रहा हूं। और किसी बात के कोई मायने होते हों या नहीं, लेकिन संवाद हमेशा मानीखेज होता है। इसे हर कीमत पर जारी रखना चाहिए- ऐसी ही तीक्ष्णता, ऐसी ही गहराई और ऐसे ही सच्चेपन के साथ! सोनापानी के मौसमों वाली तुम्हारी पोस्ट भी बहुत अच्छी थी। लिखती रहो दीपा, जब भी वक्त मिले...चंद्रभूषणhttps://www.blogger.com/profile/11191795645421335349noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7313703186279973863.post-63333457476476123482007-10-29T00:47:00.000-07:002007-10-29T00:47:00.000-07:00बढ़िया लिखा है दीपा। कमोबेश यही मेरे भी विचार हैं। ...बढ़िया लिखा है दीपा। कमोबेश यही मेरे भी विचार हैं। अभी तो हम लोगों को तमीज से अपना इतिहास देखना भी नहीं आता। विस्मृति इस कदर हावी हो चुकी है कि लोग बड़े से बड़े अपराधों को भूल जाने में एक पल नहीं लगाते। लेकिन क्या किया जाये यहीं रहना है। यहीं, इसी जीवन, इसी दुनिया में अपने पैदा होने को न्यायोचित ठहराने लायक कुछ तो करना होगा न। जो मन में आये लिखती जाना बस। शुभ।Ashok Pandehttps://www.blogger.com/profile/03581812032169531479noreply@blogger.com