मार्च 20, 2008

आयो नवल बसंत, सखि ऋतुराज कहायो


"नथनी में उलझे रे बाल "......सधे हुए स्वर के आरोह-अवरोह में अठखेलियां करते यह बोल होली गायकी से मेरा पहला परिचय थे। सिर पर गांधी टोपी और अबीर-गुलाल से रंगे सफेद कुरता-पायजामा पहने फागुनी मस्ती में लहक-लहक कर यह होली गाने वाले अपने मौसाजी के बारे में हम सोच भी नहीं सकते थे कि वो इतना बढ़िया गा लेते होंगे। आठ-दस साल की उम्र में तब न तो बोल समझ में आए थे और न हमेशा गंभीर भाव-भंगिमा वाले अपने मौसा जी का वह गायक वाला रूप। उन्हें इतना खुशमिज़ाज शायद मैंने पहली बार देखा था। उनकी वह छवि और होली के वो बोल मेरी स्मृति में हमेशा के लिए अंकित हो गए।

पहाङ में होली का मतलब रंग से अधिक राग से होता है। ऐसे में आश्चर्य नहीं कि गायन की कई प्रतिभाएं इन्हीं दिनों उभर कर सामने आती हैं। पक्के रागों की धुन से बंधी बंदिशों के रूप में गाई जाने वाली ये होलियां फागुन को संगीत से ऐसा सराबोर करती हैं कि राग-रंग रिस कर गाने वाले और सुनने वालों को असीम तृप्ति के भाव से भर देता है। आमतौर पर पुरूष व महिलाओं की होली बैठकें अलग-अलग होती हैं। पुरूषों की होली बैठकें कभी-कभी रात भर भी चलती रहती हैं और गायकी का जो समां बंधता है वह सुनने लायक होता है। कभी राधा की यह शिकायत कि "मलत-मलत नैना लाल भए, किन्ने डालो नयन में गुलाल ...."अलग- अलग होल्यारों के स्वरों में रागों का जादू बिखेरती है तो कभी किसी गोपी की ये परेशानी कि जल कैसे भरूं जमुना गहरी महफिल को गुंजायमान करती है। शास्त्रीय संगीत के प्रति मेरे शुरुआती ग्यान और रूझान की वजह होली की यही बैठकें रहीं।

दो दिन पहले ही लाल किनारी वाली सफेद धोती और माथे पर अबीर-गुलाल का टीका लगाए होली बैठकों में जाती औरतों के झुंड को देख कर बचपन की होली याद आई और बेतरह याद आई अम्मा यानी मेरी मां। अम्मा का सबसे पसंदीदा त्यौहार था होली, मोहल्ले-पङोस की मानी हुई होल्यार (होली गाने वाली) जो ठहरी। कुमाऊं में होली एक दिन का त्यौहार न हो कर लगभग पूरे महीने चलने वाला राग-रंग का उत्सव होता है। होली से पहले पङने वाली एकादशी को रंग पङता और शुरू होता है महिलाओं की होली बैठकों का दौर।

बचपन में अम्मां के साथ इन बैठकों में जाने का लालच होता था वहां मिलने वाले जंबू से छौंके चटपटे आलू के गुटके, खोयेदार गुझिया और चिप्स-पापङ। बङे होने के साथ धीरे-धीरे गाई जाने वाली होलियों के बोल, धुन भी मन में उतरने लगे। ढोलक और मंजीरे के साथ जब सिद्धि के दाता विघ्न विनाशक होली खेले मथुरापति नंदन के गायन से होली का शुभारंभ होता तो मन में एक अजीब सी पुलक सी जगती थी। यह पुलक या उछाह होली में एक नया ही रंग भर देता था जिसे अनुभव ही किया जा सकता है शब्दों में समझा पाना मेरे लिए तो संभव नहीं है।

जैसे ही हवा में फागुन के आने की गमक सुनाई देने लगती अम्मा अपनी भजनों और होली की डायरी निकाल लेती। हर होली की बैठक से लौटने के बाद डायरी और समृद्ध होती थी नऐ गीतों से। अस्थमा की वजह से साल-दर-साल मुश्किल होती जाती सर्दियों की पीङा झेलने के बाद होली मानों नई जान डाल देती थी अम्मा में। होली उसकी आत्मा तक में जुङी थी शायद इसलिए इस संसार से जाने के लिए उसने समय भी यही चुना। आज से ठीक पांच साल पहले होली के दिन मेरी मां ने इस दुनिया से विदा ली। होली मेरा भी सबसे पसंदीदा त्यौहार है खासतौर से इसकी गायकी वाला हिस्सा, लेकिन अम्मा के जाने के बाद न जाने क्यों होली आते ही मन कच्चा सा हो जाता है और अबीर-गुलाल का टीका लगाऐ होली बैठकों में जाती औरतों को देख कर आंख पनीली हो आती हैं।
(ये फोटो युगमंच वाले प्रदीपदा ने भेजी है ब्लाग पर लगाने के लिए। धन्यवाद प्रदीप दा।)

5 टिप्‍पणियां:

विजय गौड़ ने कहा…

kaabdkhane mai bhi pada aayo naval basant. holi ki subh kamnain.

सुजाता ने कहा…

दीपा जी पहाड़ी स्त्रियों के जीवन और दिनचर्या के बारे में हमें चोखेर बाली पर बताइये न ! अच्छा लगेगा ।
चोखेर बाली - sandoftheeye.blogspot.com

ghughutibasuti ने कहा…

होली कुछ त्यौहार ही ऐसा है कि बीमार भी उठकर खड़ा हो जाए । आपकी अम्मा का होली प्रेम अच्छा लगा ।
घुघूती बासूती

अजित वडनेरकर ने कहा…

एकदम बढ़िया। जानकारी बढ़ाने वाला। और मैं कहूं कि नास्टैल्जिक भी है तो ग़लत नहीं होगा।
दीपा, आपसे शिकायत यही है कि आपने अपना ईमेल पता प्रोफाइल पर नहीं डाला है। आप जब भी सफर पर आती हैं , हमे अच्छा लगता है पर तत्काल आभार प्रकट करने के लिए रिप्लाई वाला तरीका काम नहीं करता क्योकिं वो तो ब्लागर से जुड़ा है। बहरहाल, बहुत बहुत आभार।
ये न समझें कि हम आपके ब्लाग पर ऩहीं आते । पर शायद आपकी व्यस्तताएं ज्यादा हैं सो इस पर जल्दी जल्दी अपडेट देखने को नहीं मिलतीं।
मंगलमय हो जीवन...

Manish Mehta ने कहा…

दीपा जी नमस्कार ! कुछ समय से आपके ब्लॉग पढता हूँ दिल को छूता है, बेहतरीन लेख !
आपसे अनुरोध है गर आप अपने पोस्ट लोकरंग ब्लॉग में भी पोस्ट करे तो अच्छा रहेगा हमारी टीम इससे सभी जगहा पब्लिश कर देगी !

ब्लॉग का पता है - http://blog.lokrang.org/