फ़रवरी 06, 2008

फुरसत ही नहीं मिलती

आज बहुत दिनों के बाद ब्लाग की दुनिया में वापसी हो रही है बहुत अच्छा लग रहा है। इस बीच कबाङखाने में बहुत से महत्वपूर्ण लोगों की आमद से लगता है कबाङ का धंधा काफी मुनाफे का चल रहा है। बहरहाल, जैसा कि आप में से ज्यादातर लोग जानते हैं कि इस बीच मैं एक बालक की भी मां बन गई हूं और यकीन जानिए दो बच्चों को संभालना बिल्कुल भी आसान काम नहीं है। इसलिए ब्लाग लिखना तो छोङिए अखबार की सुर्खियां तक पढ पाना मुहाल हो गया है। थोङी सी मोहलत मिली तो सोचा एक चक्कर यहां का लगा आऊं। अभी तो फिलहाल उम्मीद ही कर रही हूं कि शायद एक आध महीने मे स्थिति नियंत्रण में आ जाएगी और कुछ लिखने का मौका मिलेगा। कबाङखाना में पुत्रजन्म की सूचना पर कई मित्रों की शुभकामनाएं मिलीं, आपके आर्शीवचनों के लिए ह्रदय से आभार। अमर उजाला के कुछ पुराने साथियों को अपने ब्लाग पर देख कर बहुत खुशी हो रही है, मैं जल्दी ही लौट कर बातचीत का सिलसिला आगे बढानें की कोशिश करूंगी। फिलहाल इतना ही।