(समय पर लिखने की मेरी कोशिश का पहला हिस्सा)
मां शायद कभी न देती
आर्शीवाद खूब बड़े हो जाने का
अगर जान पाती कि
कितनी अकेली हो जाएगी वो तब।
लङकियों की शादी का सपना
संजोते पिता भी अगर जानते होते
उनके विदाई के बाद के
खून तक में चुभने वाले एकाकीपन को
तो शायद सपनों को किसी दूसरे रंग में रंगते।
बेटे की ऊंची नौकरी भी शायद
उनकी प्रार्थनाओं में नहीं होती
अगर पहले से महसूस कर पाते
घर में उनके न होने का दर्द।
कितना कुछ छूट जाता है, कट जाता है
एक परिवार में,
सिर्फ समय के आगे बढ़ जाने से।
कभी शौक से बनवाया चमचमाता नया घर
बीतते वर्षों के साथ पुराना बूढ़ा दिखाई देने लगता है
निर्वासित छूटे घर के दर्द को पीते हैं
अपने बालों की सफेदी और चेहरे की झुर्रियों के साथ
बूढ़े होते मां-बाप धूप में अकेले बैठ कर
अचानक खूब बड़े हो गए घर में
बच्चों की पुरानी छूटी आवाजों को सुनते हुए।
मई 04, 2008
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7 टिप्पणियां:
एक सम्वेदनशील कविता , कविता जैसा कुछ .....:-)
sujata
चिर सामयिक विषय पर बहुत खूबसूरती से लिखा आपने.बधाई.
कविता जैसा नहीं, बहुत संवेदनशील कविता ही.
Behad savedansheel kavita.
Jeevan kay nisthur aur marmik satay.
Bakool Nida Fazli :
Duniya Jisay Kahtay Hain Jadu ka Khillona Hai,
Mil Jayay Toh Matti Hai,
Kho Jayay toh Sona Hai.
jis pahari khane ne bachpan ki yadein taza kar di gaon ghar jangal sab kuch jiwant ho utha vaisi hi samvedana kavita mein bhi thi.Kosis karunga agli bar hindi mein hi likhun
Dil ko chu lene wali kabita. Ek sachaai bhi, Ek uttardaitva bhi,
Ek samvedna bhi.
Best wishes an regards.
Shardu Rastogi.
Beira, Mozambique.
Dil ko chu lene wali kabita. Ek sachaai bhi, Ek uttardaitva bhi,
Ek samvedna bhi.
Best wishes an regards.
Shardu Rastogi.
Beira, Mozambique.
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