मई 10, 2008

समय-दो

(...... और यह रहा दूसरा हिस्सा)
समय चुपचाप चहलकदमी करता रहता है
पल-छिन का हिसाब-किताब करते हुए
कभी न रुक सकने की नियति ढोता, बेबस
समय करता है कल्पना घङियों की कैद से मुक्ति की
बाबरा है समय, जाने क्या-क्या सोचता है

लेकिन सोचो तो अगर समय निकल ही जाए
घङियों की कैद से, तो क्या होगा
तब उन बेचारों पर तो बङी बुरी बीतेगी
जो बेहतर कल के सपनों के साथ
जैसे-तैसे काट रहे हैं आज का कठिन दिन
लेकिन उनकी बन आएगी
जिनके पापों का फल मिलना है कल

ऐसे तो उलट-पुलट जाएगा सब कुछ
सोचता है समय
समय महसूस करता है जिम्मेदारी
इसलिए बना रहता है कैद में
मुस्तैदी से करता है पल-छिन का हिसाब

वो शायद कभी जान भी नहीं पाता होगा
कितना डर जाता है कोई
किसी पुराने महल के उजङे, वीरान खंडहर में
चहलकदमी करते हुए
घङियों में कैद समय की ताकत को जान कर

8 टिप्‍पणियां:

siddheshwar singh ने कहा…

समय तो समय है
इसी में जीवन की लय है

कामोद Kaamod ने कहा…

बहुत बड़िया, सारा खेल समय का है.

Surakh ने कहा…

जरूरी है वक्त की पहचान करना,आपके ब्लाग पर पहली बार आया अच्छा लिखते है लिखते रहें।

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया. लिखते रहिये.

DUSHYANT ने कहा…

bahut khoob , man prasann huaa aapke blog par aakar

दीपा पाठक ने कहा…

हौसला बढ़ाने वाली टिप्पणियों के लिए समय निकालने के लिए आप सभी लोगों का बहुत-बहुत धन्यवाद।

Unknown ने कहा…

blog bahut acha laga...

शिरीष कुमार मौर्य ने कहा…

दीपा जी आपने मेरे अनुरोध का मान नहीं रखा। अनुनाद छपने चली गई है। अपने ब्लाग पर भी आप खामोश ही हैं।