(17 साल पहले लिखी कवितानुमा कोई चीज़! फटती-उधड़ती बचपन की डायरी के अलग हो गए पन्ने पर लिखी इन पंक्तियों को अस्तित्वहीन होने से बचाने के लिए यहां डालने का लोभ रोका नहीं गया)
आंखों के पथरा जाने से बेहतर है
उनका आंसुओं से भरे रहना,
जिन्हें बहाया जा सके रोकर
ताकि उसके बाद जगह हो
आंखों में, उम्मीदों के लिए
सपने बसने चाहिए आंखों में, हाथों में
सपनों को बुन कर मत खो जाने दो
दिमाग की पेंचिदा गलियों में
भटकने के लिए
सपने बनते हैं हकीकत, अगर
कुचले न जाएं सपनों के ही बोझ से
सपनों को सींचना पड़ता है उम्मीद से
वरना हवा में तैरते सपने अक्सर
बदल देते हैं अपना खुशनुमा रंग
जिंदगी से भागते बदनुमा रंगों से
मत डूबो सपनों में
पलने दो, बढ़ने दो
फलने दो सपनों को
आंखों में, हाथों में।
अक्टूबर 06, 2010
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5 टिप्पणियां:
आपको पढ़ना…
खूब अच्छा लगता है …
दीपा
आपु ब्होते भल लिख्चा दी. तुमार ब्लॉग कां बटी फोलो करूँ छु? येक तो लिंक ले नि लगुन लाग रो ब्लॉग-रोल मा.
२-३ महीन पेलिं ले आयीं छि तब ले तुमार ब्लॉग कसी फोलो करूँ छु येक पत्त नि लागो :(
के बात नी भे...
१७ साल पेली लिखी यो कबिता ले भल लागने...
आंखों के पथरा जाने से बेहतर है
उनका आंसुओं से भरे रहना,
धन्यवाद दर्पण, तुमन के मेर ब्लॉग भल लगुं, जाण बैर खुशी भै। पत्त ने भुला यो लिंक-विंक लगूण तो मैंके ले नी ऊन। म्यर पेज में कोई ले लिंक नि लगू..कई बार कोशिश कर बैर देखी नि हुने। मैं यां पहाड़ में रूं, इंटरनेट लिजि डेटाकार्ड इस्तेमाल करूं ये लिजि नेट में जाण बोत नि हुन। लेकिन मैं तुमर ब्लॉग में द्वि-चार बार जा रयूं। ऊने रया।
बहुत खूबसूरत कविता .
बहुत प्यारी नज़्म .. सपनो को आगाज़ देती हुई . जिंदगी को आशा की किरण देती हुई .
आपको बधाई !!
आभार
विजय
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कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
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